सूखी बारिश
आह! बारिश तू जब आसमान से गिर धरती पर पड़ती है तो देखने वाले के मन को कितना सुकून देती है क्या तुझे पता है ? छम-छम करतीं तेरी ये बूँदें मन में इक अजीब सी खनक पैदा करती है उस खनक को सुन देखो पेड़ों के पत्ते जैसे झूम उठे बरसती बूंदों से सूखी पड़ी धरा में जान भर आई चहचहाते पंछी फड़फड़ाते अपने पर भिगोने लगे और प्यासा सा मन तेरी ओर देखकर पूछने लगा ‘बारिश, तू क्या कभी इतनी गीली हो पाएगी कि मेरे इस सूखे पड़े मन को भिगो सके?’